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सफर - मौत से मौत तक….(ep-2)









नंदू और यमराज उस छोटे से पुराने घर मे पहुंचे। अभी छोटा नंदू भी पहुंच ही रहा था। शायद वो यमराज और नंदू अंकल ठीक टाइम पर पहुंच गए थे।

दोनो छोटा नंदू के साथ ही अंदर की तरफ आये। आगे आगे छोटा नंदू सिर झुकाए जा रहा था। उसके पीछे किसी को नही दिखने वाला बड़ा नंदू और उसके पीछे यमराज।

दो ही कमरे थे यहाँ….एक कमरे में किचन था और दूसरे कमरे में एक चारपाई साथ मे एक बिस्तर का ढेर जिसे चादर से ढका गया था। दो पानी की ढकी हुई बाल्टी, और एक कनस्तर।

सरला आयी और छोटे नंदू को पानी दिया। तभी बड़ा नंदू उठकर अंदर की तरफ जाने लगा….
यमराज ने बड़े नंदू का हाथ खींचकर उसे वापस बैठाते हुए कहा- "तुम कहा जा रहे हो अंकल….बैठो इधर"

"वो मैं माँ से मिलने जा रहा हूँ, देखना है वो अंदर क्या कर रही है" बड़ा नंदू बोला।

तभी अंदर से आवाज आई- सरला, नंदू को बोल दे कि हाथ मुंह धो आ….मैंने चाय रखी है। थोड़ी मुझे दे और उसे भी दे दे"

सरला ने पानी का गिलास लेते हुए कहा- "सुन तो लिया होगा माँ ने क्या कहा….जा हाथ मुंह धो ले"

"बाबूजी कहाँ है?" छोटे नंदू ने पूछा।

" वो तो काम पर गए थे, किसी ठेकेदार का फोन आया था, शायद कोई नया मकान बन रहा है, बस उधर काम मिल गया उनको" सरला बोली।

"मैंने कितनी बार बोला है उनको की अब आपको काम करने की जरूरत नही है….मैं कमाने तो लगा हूँ…." नादान लफ़्ज़ों में नंदू ने कहा।
नंदू को लगता था उसके चंद पैसो से उनके घर का गुजारा हो जाता होगा, वो जितना कमाता था उतना सिर्फ महीने भर के राशन के लिए पर्याप्त था…. नंदू बच्चा था, उसे नही पता कि पिताजी की जिम्मेदारी सिर्फ पेट भरने तक सीमित नही है, अभी सरला और तुलसी की शादी करके अपने कंधे से बहुत बड़ा बोझ हल्का करना है। 

नंदू की बात सुनकर यमराज ने नंदू अंकल के पीठ में एक थप्पी देते हुए कहा- "वाह अंकल जी, आप तो बचपन से ही नादान थे, और बुढ़ापे तक भी नादान ही रहे, और नादानी में आपने ऐसा कदम उठा लिया….क्यो उठाया?" यमराज ने अचानक सवाल किया ताकि नंदू अंकल बिना सोचे समझे कोई जवाब दे दे और उसे पता चल जाये कारण और फिर इतनी लंबी कहानी नही सुननी पड़े।

लेकिन नंदू अंकल बहुत चालाक किस्म के थे, और अभी वो अपने अतीत को एक बार फिर जी रहे थे, उन्होंने कहा- "तुम्हे बताऊ मैंने क्यो फांसी लगाई…." नंदू बोला।

"हाँ बताओ…." यमराज बोला।

शरारत भरी नजरो से नंदू अंकल ने यमराज की तरफ देखा और हंसने लगे।

आश्चर्य चकित होकर यमराज ने पूछा- "क्या हुआ….हँस क्यो रहे हो"

हँसते हुए नंदू अंकल बोला- "मुझे पता है अगर मैंने कहानी का एंड बता दिया तो आप मुझे लेकर सीधे उपर चले जाओगे….अब तो एंड में ही पता लगेगा, मैं ऐसे बातो में नही फंसने वाला हूँ"

"हे प्रभु…. हे महादेव…… मेरी कंफ्यूजन दूर करो….यमराज मैं हूँ या ये……मैं इसको सताने की सोच रहा था जिसने मुझे  ही लपेटे में ले लिया "  यमराज बोला।

"लपेटा लुपेटा छोड़….शांत हो जा माँ आ रही है मेरी बाहर को" नंदू बोला।

कौशल्या देवी , जयन्तलाल की धर्मपत्नी , तुलसी, सरला और नंदू की इकलौती ओरिजनल माँ का उस कमरे में  प्रवेश हुआ, जहाँ यमराज और नंदू बैठे थे, अभी छोटा नंदू हाथ पैर धोने गया था।

कौशल्या के हाथ मे चावल की थाली थी, वो चावल साफ कर रही थी, शाम को पकाने के लिए,  उनको देख तो नही सकती थी कौशल्या , इसलिए वो पास ही आकर जमीन पर बैठ गयी। और ध्यानमग्न होकर चावल बीनने लगी।

अपनी माँ को बहुत सालों बाद देखकर नंदू की आँखे नम हो गयी, उसने बगल में बैठे यमराज के वस्त्र से आंखों को पोछते हुए कहा- "माँ….कितनी अच्छी थी ना तू……."

"मेरे कपड़े क्यो गंदा कर रहे हो अंकल….ऐसी हरकत करोगे तो मैं वापस ले चलूंगा"  यमराज बोला।

"ए चुप कर हलकट……तुझे पता है माँ के आंचल के तले ही जन्नत है… तुझे जाना है जा….मैं तो यही रहूँगा" थोड़े गुस्से वाले भाव मे यमराज को डांटते हुए इमोशनल हो चुका नंदू अपनी माँ के बगल में जा बैठा.

"तू कितनी भोली है ना… हर वक्त काम काम काम….कभी आराम भी कर लिया कर" नंदू ने अपनी माँ से कहा। लेकिन कौशल्या कहाँ नंदू को देख पा रही थी, ना ही सुन पा रही थी।  बस अपने काम मे मगन थी, आंखों में थोड़ी थकावट थी, लेकिन चेहरे के भाव जैसे बिल्कुल खुश है अपनी जिंदगी से, कोई गम नही है।

तभी छोटे नंदू ने बाहर से आवाज दी- " माँ….ओ माँ….तौलिया कहाँ है, मुझे नही मिल रहा, अंदर है क्या….खिड़की से बाहर फेंक देना"

अपने घुटने पर हथेली रखते हुए कौशल्या उठी और अंदर बक्शे के उपर से तौलिया उठाकर खिड़की से नंदू को कैच करा दी। और दोबारा उसी तल्लीनता से चावल बीनने लगी,

तभी दोबारा नंदू ने आवाज दी…. - "मां …. ये कमीज मैली हो गई है, कोई कमीज दे दे, मैं इसे उतार रहा हूँ" 

कौशल्या उठी और अंदर से कमीज ढूंढकर नंदू को दे दी, फिर चावल को चूल्हे में चढ़ाकर, दाल के लिए प्याज टमाटर काटने लगी….प्याज काटने में आंसू भी आ रहे थे। लेकिन आंख मुदमुदकर काटे जा रही थी।

नंदू कमीज बदलकर अंदर आया और चारपाई में बैठ गया, और बोला…. "जा मेरे लिए चाय तो ले आ"

इस बात पर नंदू अंकल को गुस्सा आने लगा….वो भूल गया कि वो मैं ही हूँ, बस उसे डांटते हुए बोल पड़ा- "अरे हलकट…. इतना चुस्त- दुरुस्त है….खुद जाकर ना तौलिया ले सकता है ना कमीज….चाय तो ले ले….तुझे नही पता माँ के घुटने दर्द करते है, बार बार उठाये बैठाए जा रहा है उसे"

उसकी भला कौन सुन पाता शिवाय यमराज के….बस यमराज हंसने लगा - "ये तो सच मे नादान ही है….आज इसे मां के घुटने का दर्द दिखाई दे रहा है, और वो थकी भी दिख  रही है, जबकि उस समय इसे उसकी थकने का, घुटने दर्द का कोई एहसास नही था।"

कौशल्या उठी और चाय को गर्म करके ले आयी और नंदू को पकड़ा दिया।

फिक्र नंदू को तब भी थी माँ की, लेकिन आज ज्यादा थी, जबकि वो जानता था कि माँ अब नही है इस दुनिया मे, ना ही वो खुद इस दुनिया मे है, जैसे वो अब जीवन जी रहा है वैसे ही माँ भी जी रही होगी।

छोटा नंदू चाय पीने लगा था, उसके चाय पीने की चुस्की की आवाज बहुत तेज होती थी, बचपन से ही उसे आदत थी गर्म गर्म चाय पीने की….और एक अजीब आवाज के साथ पीता था बहुत दूर तक डिस्टर्ब करती थी।

"अरे चाय पी रहा है कि सीटियां बजा रहा….आराम से पी" बेकाबू होकर यमराज छोटे नंदू से बोला।

"अरे वो आपकी नही सुनेगा….आप शायद भूल गए कि हम दोनों को कोई देख और सुन नही पायेगा" नंदू ने यमराज को याद दिलाते हुए कहा।

"अछ्या जी! जब आप उसे डाँट रहे थे….तो उसने सुना था क्या….जब यह जानते हुए की वो हमें देख और सुन नही सकता, आप उसे डाँट सकते है, तो क्या मैं उसे डाँट कर अपनी मन की भड़ास नही निकाल सकता" यमराज बोला।

"निकालिए निकालिए….आपके मन मे और होता भी क्या है निकालने के लिए….भड़ास के अलावा" बड़ा नंदू बोला।

यमराज कुछ बोलता की अचानक छोटा नंदू बोल पड़ा- आज पूरे दिन में एक रुपया ठीक से नही कमाया….कल मैं इस स्टेशन में नही जाऊंगा….लोकल स्टैंड से ही सवारी ढूंढूंगा"

"कोई बात नही बेटा….टेंशन मत ले….आराम आराम से करा कर काम, तेरे बाबूजी भी कर ही रहे है ना" कौशल्या बोली।

"नही माँ! टेंशन तो लेनी पड़ेगी….मैं इतना कमाना चाहता हूँ कि मेरे माँ- बाबूजी को पैसे कमाने के लिए मेहनत नही करनी पड़े….और घर का गुजारा आराम से चलता रहे….मुझे अच्छा नही लगता बाबूजी किसी के घर पत्थर तोड़ते  है…" नंदू बोला।

अभी बाद नंदू अपने दोनो हाथों को घुमाकर सिर के पास लाकर नजर उतारने वाली एक्टिंग करते हुए बोला- "वाह मेरे लाल….मजा आ गया….छा गया तू तो….वाह!"

कौशल्या ने छोटे नंदू की तरफ देखा- "हमे कहाँ अच्छा लगता है बेटा….लोग अपने बच्चों को पढ़ाते है, लिखाते है….और अच्छा काम दिलातें है….हम तुझे काम पर भेजते है….हमे भी बुरा लगता है जब तेरे साथ के लड़के सकूल जाते है और तू  काम पर" कहते कहते ही कौशल्या का गला  भर आया, और वो सुबकते हुए कटी हुई शब्जी लेकर अंदर चली गयी।

नंदू बाहर से ही जोर से बोला- "तो क्या हो गया माँ….आज नही तो कल कमाने की जरूरत तो पड़ेगी ना….अब आप लोगो के ऊपर और भी जिम्मेदारियां है, मैं ही अकेले होता तो बात अलग थी"

नंदू ने बस इतना कहा कि बड़ा नंदू बोल पड़ा- "कारण जो भी रहा अच्छा ही रहा….वरना बाकी घरों में पांच से कम बच्चे कही देखने को नही मिलते थे तब….शायद मम्मी पापा समझदार थे मेरे जो तीन बच्चों के बाद फुलस्टॉप लगा दिया"

अभी यमराज बड़े नंदू की बात नही सुन रहा था, वो तो छोटे नंदू  और उसकी माँ की बात सुनकर हैरत था…. नंदू इस उम्र में ही मम्मी पापा को कोई तकलीफ़ नही देना चाहता था, उनकी सारी जिम्मेदारियां खुद लेने को तैयार था। उसे मम्मी पापा दोनो की फिक्र थी। और दूसरी तरफ कौशल्या की बात से साबित होता था कि कोई भी माँ अपने बच्चे को वो सब सुख देना चाहती है जो बाकी बच्चे ले रहे होते है। शायद उससे भी ज्यादा…… लेकिन उनकी मजबूरी और लाचारी ही होती है जो वो अपने बच्चों को कम उम्र में इस तरह कमाने के लिए भेज देती है।

कौशल्या का रो पढ़ना इस बात का गवाह था कि वो चाहती थी नंदू बाकी बच्चो की तरह पढ़े लिखे और एक बड़ा आदमी बने….लेकिन नंदू को पढ़ाने लिखाने की हैसियत नही थी। ना इतने पैसे………

तभी बाहर से किसी के आने की आहट हुई, एक लड़खड़ाके चलती हुई कदमो की आवाज….

सरला और तुलसी दोनो अंदर आ गए और चारपाई में बैठने लगे तो यमराज उठकर खड़ा हो गया, और उन्हें बैठने दिया।

बड़ा नंदू खिड़की से झांका तो उसके पापा जयन्तलाल का आगमन हो रहा था, शाम बहुत हो गयी थी,अंधेरा हो गया था। लड़खड़ाते हुए आ रहे जयन्तलाल को देखकर बड़ा नंदू
बोल पड़ा- "आज फिर मदिरापान करके आये है…." कहते हुए नंदू परेशान चेहरा लेकर एक तरफ जमीन में ही बैठ गया।

लड़खड़ाते कदम ही नही जुबान भी थी- "अरे कोई बत्ती तो जलाओ….ये अंधेरा क्यो कर रखा है" अंदर आते आते जयन्तलाल बोला।

सरला बाबूजी से बहुत डरती थी वो अंदर जाकर बत्ती जलाकर ले आयी, मिट्टी के तेल से जलने वाली बत्ती ही तब बहुत रोशनी देती थी। एक कमरे में एक बत्ती जला दी गयी।

जयन्तलाल ने अपना टिफ़िन अंदर रखा और बाहर चले गया, हाथ मुंह धोने, क्योकि दिन भर पत्थर का काम होता है।

जयन्तलाल के बाहर जाने पर कौशल्या ने नंदू से चुपके से इशारे में पूछा- "पी है क्या"

नंदू ने हाँ मैं सिर हिलाया।

"इनको भी बिल्कुल फिक्र नही है….कहाँ से लाएंगे, क्या पकाएंगे, क्या खाएंगे….बस पीना चाहिए….एक बोतल हड़कायी….अपनी टेंशन खत्म कर ली….हमको जो टेंशन है इसका क्या…." कौशल्या बोली।

"तू चुपकर माँ….रहने दे….खाली झगड़ा मत करने लग जाना….जो बात करनी होगी सुबह कर लेना"  नंदू बोला।

नंदू यमराज से बोला- "थोड़ा फॉरवर्ड कर दो भाई….इससे आगे इमोशनल सीन और डायलॉग आएंगे….मेरे बस का नही है उसकव देखना"

यमराज की आंखे नम थी, वो कहानी में रम से गया था, जैसे उसकी अपनी कहानी हो, नंदू की बात सुनकर उसने कहा- "क्यो ऐसा भी क्या होने वाला है जो फॉरवर्ड करने को बोल रहे हो….ये कोई सीडी प्ले नही किया है जो फॉरवर्ड कर दूं….आपको नही देखना तो आप बाहर चले जाओ"

नंदू ने आगे कुछ नही कहा। वो उठकर बाहर चले आया….बाहर आंगन में उसके बाबूजी हाथ पैर धो रहे थे….ऐसे झूम रहे थे जैसे कभी भी गिर जाएंगे….लेकिन खुद पर कंट्रोल भी था….खुद को गिरने से बचा भी रहे थे

नंन्दू उनके पास जाकर खड़ा हो गया इस उम्मीद में कई अगर बाबूजी गिरने लगे तो संभाल लूँगा…. एक दो बार उसने बाबूजी के बाजू पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वो ना जाने क्यो बार बार भूल जा रहा था कि ये सब भयत चुका है….वो कुछ भी नही कर सकता। इस कहानी में चाहकर भी कोई परिवर्तन संभव ही नही था।

नंदू परेशान होकर बाहर बने दीवार पर बैठ गया….और बाबूजी अंदर चले गए….और जाकर खिड़की के पास बैठ गए।

नंदू बाहर ही बैठा रहा….अभी अंदर कुछ खास काम नही हो रहा होगा….कौशल्या खाना पका रही होगी… नंदू चारपाई में लेट गया होगा….सरला और तुलसी भी मुंह बनाकर चारपाई के एक कोने में एक दूसरे से ख़ूचर बुचर कर रहे होंगे।

"नंदू बेटा….ओ नंदू…."  जयन्तलाल ने नंदू को पुकारा…. शराब पीकर ज्यादा बोलने की आदत थी उसे….लेकिन नंदू को बहुत गुस्सा आता था जब उसके बाबूजी उसको इस तरह पुकारते थे।

बाहर बैठा नंदू….उसको पापा के इस पुकार में प्यार नजर आया….शायद दारू पीने के बाद ही वो अपना बच्चो से प्यार जाहीर कर पाते थे। बिना पिये तो बच्चो की, घर की दस तरह की टेंशन उनके दिमाग मे होती थी। लेकिन अभी उनका माइंड फ्रेश था। अभी वो अपने बच्चों से प्यार से बात करना चाह रहे थे। लेकिन बच्चो का बाबूजी के प्यार में शराब की मिलावट नजर आ रही थी इसलिए वो उन्हें नफरत की नजर से देख रहे थे। ऐसी बात नही की बच्चे अपने बाबूजी से नफरत करते थे, या बात नही करना चाहते थे, वो बहुत बात करना चाहते है लेकिन तब जब उन्होंने पी नही हो….शराब के लिए बच्चो की नफरत एक बाप के प्यार को नही समझ पाएंगे। उन्हें नजर आएगी तो शराब का नशा और नशे में डूबा बाप।

जयंत लाल ने दो तीन बार नंदू नंदू पुकारा लेकिन नंदू ने नींद का बहाना कर लिया….

लड़खड़ाती आवाज में बोले - मेरा नौतन्की बाज….नौतन्की दिखा रहा है….ना!"

अंदर से भयानक आवाज आई- "आराम करने दो उसे….दिन भर वैसे परेशान रहता है अभी आप कर लो….बिना पिये तो कभी बात नही करते उससे इतना….हल्ला मत करो बाहर….थक के आया है मेरा बेटा" कौशल्या ने कहा।

जयन्तलाल ने आवाज सुनी और बोला- "तू क्यो बीच मे बोलती है….मुझे नफरत है तेरी आवाज से….तू चुप……. मेरी सरला बोलेगी….सरला को मैं पढ़ाऊंगा-लिखाऊंगा….ठीक है सरू…."

"पढ़ा दिया आपने….नंदू को तो पढ़ा नही सके….अब सरू को पढ़ाओगे……" कौशल्या फिर बोल पड़ी।

"बीच मे मत बोल….तू खाना पका…. ये बाब बेटी के बीच की बात है" जयन्तलाल बोला।

"सुबह कहाँ चले जाता है ये बाब बेटी वाला प्यार……" कौशल्या बोली।

नंदू को लगने लगा अगर इनका बोलना चालू रहा तो बात आगे बढ़ेगी। बात आगे बढ़ी तो हाथापाई ना होने लगे। नंदू उठा और  नकली नकली अंगड़ाइयां लेते हुए ऐसी एक्टिंग करने लगा जैसे अभी अभी नींद से उठा , उठकर बैठते हुए बोला- "क्या हो गया….मेरी नींद खराब कर दी"

"खानां खाकर सोएगा मेरा बेटा….सरू जा इसके लिए खाना लेकर आ" जयन्तलाल बोला।

"दोनो बाब- बेटे को खिला दे….ले दोनो के लिए ले जा" कौशल्या ने सरू को आवाज दी।

दोनो के लिए खाना परोसा….

हमेशा की तरह पहले जयन्तलाल और नंदू को खानां देते थे, फिर दो लड़कियों को फिर कौशल्या खाती थी। हैरान करने वाली बात यह होती थी कि कौशल्या के लिए हमेशा भरपेट खाना बच जाता था। क्योकि दो रोटी बचे या चार पांच….या सिर्फ एक बचे… लेकिन कभी ये नही सुनने को मिलता की खाना कम पड़ गया। अब ऐसा क्या राज था ये तो एक माँ ही समझ सकती है।

कहानी जारी है


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11 Comments

Milind salve

09-Dec-2021 07:01 PM

Good

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Seema Priyadarshini sahay

06-Dec-2021 06:25 PM

बहुत ही बेहतरीन👌👌

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Khan sss

29-Nov-2021 07:21 PM

Good

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